नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर रविवार को कहा कि कभी किसी ने सोचा नहीं होगा कि ये राजपथ भी योगपथ बन सकता है। मैं मानता हूं कि आज से न सिर्फ एक दिवस मनाने की शुरुआत हो रही है, बल्कि शांति, सद्भावना की ऊंचाइयों को प्राप्त करने के लिए एक नए युग का आरंभ हो रहा है।
उन्होंने कहा कि कभी-कभार बहुत सी चीजों के प्रति अज्ञानतावश कुछ विकृतियां आ जाती हैं। सदियों से ये परंपरा चली आ रही है, कालक्रम में बहुत सी बातें इसमें जुड़ी हैं।
मोदी ने राजपथ पर कहा, मैं आज ये कहना चाहूंगा कि सदियों से जिन महापुरुषों ने, जिन ऋषियों ने, जिन मुनियों ने, जिन योगगुरुओं ने, जिन योग शिक्षकों ने, जिन योग अभ्यासियों ने सदियों से इस परंपरा को निभाया है, आगे बढ़ाया है, उसमें विकास के बिंदु भी जोड़े हैं। मैं आज पूरे विश्व के ऐसे महानुभावों को आदरपूर्वक नमन करता हूं और मैं उन पर गौरव करता हूं।
प्रधानमंत्री ने कहा, ये शास्त्र किस भू-भाग में पैदा हुआ, किस भू-भाग तक फैला, मैं समझता हूं मेरे लिए उसका ज्यादा महत्व नहीं है। महत्व इस बात का है कि दुनिया में हर प्रकार की क्रांति हो रही है। विकास की नई-नई ऊंचाइयों पर मानव पहुंच रहा है। आवश्यक है कि मानव का भी आंतरिक विकास होना चाहिए, उत्कर्ष होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि आज विश्व के पास योग एक ऐसी विद्या है, जिसमें विश्व के अनेक भू-भागों के अनेक रंग वाले लोगों ने अनेक परंपरा वाले लोगों ने अपना-अपना योगदान दिया है। उन सबका योगदान स्वीकारते हुए अंतर्मन को कैसे विकसित किया जाए, अंतर-ऊर्जा को कैसे ताकतवर बनाया जाए, मनुष्य तनावपूर्ण जिंदगी से मुक्त होकर शांति के मार्ग पर जीवन को कैसे प्रशस्त करे, इस पर ध्यान देना है।
मोदी ने कहा, ज्यादातर लोगों के दिमाग में योग एक प्रकार से अंग-मर्दन का कार्यक्रम है। मैं समझता हूं कि यह मानना सबसे बड़ी गलती है। योग अंग-उपांग मर्दन का कार्यक्रम नहीं है। शरीर को हम कितना लचीला बनाते हैं, कितना मोड़ देते हैं, वह योग नहीं है।
उन्होंने कहा, हमने कभी-कभार देखा है, संगीत का बड़ा जलसा चलता हो और प्रारंभ में जो वाद्य बजाने वाले लोग हैं, वे अपने-अपने तरीके से वाद्य को ठोक-पीट करते रहते हैं। कोई तार ठीक करता है, कोई तबला ठीक करता है, कोई ढोल ठीक करता है, इसमें पांच-सात मिनट लगते हैं, तब तक दर्शकों को लगता है कि यार ये शुरू कब करेंगे। जिस प्रकार से संगीत शुरू होने से पहले ताल-ठोक का कार्यक्रम होता है, बाद में उसका फायदा दिखता है कि एक सुरीला संगीत निकलता है।
ये ताल-ठोक वाला कार्यक्रम पूरे संगीत समारोह में बहुत छोटा होता है, एक-एक आसन भी पूरी योग क्रिया में उतना ही उसका हिस्सा है। बाकी तो यात्रा बड़ी लंबी होती है और इसीलिए उसी को जानना और पहचानना आवश्यक है। और हम उस दिशा में ले जाने के लिए प्रयत्नरत हैं।