बगावत की राह पर ज्योतिरादित्य सिंधिया

मध्य प्रदेश/नगर संवाददाता : मध्य प्रदेश में सत्ता में काबिज कांग्रेस में अध्यक्ष पद को लेकर पार्टी का अनुशासन और एकता तार-तार हो गई है। जिस गुटबाजी के चलते सूबे में कांग्रेस सत्ता से 15 साल दूर रही, वह इस वक्त पार्टी में एकदम सतह पर आ गई है। अध्यक्ष पद को लेकर सिंधिया और दिग्विजय गुट आमने-सामने आ गए हैं। दोनों ही गुटों के बड़े नेता यहां तक मंत्री और विधायक भी सीधे एक दूसरे पर हमलावर होकर अपना शक्ति प्रदर्शन कर रहे हैं।

प्रदेश अध्यक्ष के लिए सिंधिया ने अपनी दावेदारी ठोंकते हुए पार्टी आलाकमान को अपना अल्टीमेटम पहले ही दे दिया है। इस बीच सिंधिया के बेटे महाआर्यमन ने सोशल मीडिया पर अपने पिता का एक वीडियो शेयर कर दिया, जिसके बाद प्रदेश की सियासत में मानो भूचाल आ गया। बेटे ने पिता का जो वीडियो सोशल मीडिया पर डाला है उसमें सिंधिया उसूलों की बात करते हुए नजर आ रहे हैं।

वीडियो सामने आने के बाद यह माना जा रहा है अब सिंधिया बगावत की राह पर आगे बढ़ गए हैं। सिंधिया को पीसीसी चीफ नहीं बनाया गया तो वह अपनी नई राह चुनने में देर नहीं करेंगे।
पार्टी में हाशिए पर सिंधिया: मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव के समय ज्योतिरादित्य सिंधिया पार्टी के सबसे बड़े और लोकप्रिय चेहरा माने जाते थे, उनके समर्थक उनको प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बताते थे। चुनाव में जब कांग्रेस ने सूबे में जीत हासिल कर अपना 15 साल का वनवास खत्म किया तो उसमें सिंधिया की मेहनत को काफी सराहा गया था।

समर्थक अपने नेता को मुख्यमंत्री बनाए जाने की मांग करने लगे, लेकिन जब मुख्यमंत्री चुनने के बात आई तो कमलनाथ सिंधिया पर भारी पड़ गए और पार्टी आलाकमान ने कमलनाथ के नाम पर अपनी मोहर लगा दी।

उस वक्त भी सिंधिया की नाराजगी की खबरें खूब सुर्खियों में रहींं लेकिन राहुल गांधी के हस्तक्षेप के बाद सिंधिया कमलनाथ को मुख्यमंत्री बनाने पर मान गए। कमलनाथ के मुख्यमंत्री बनने के बाद जैसे जैसे समय बीतता गया सिंधिया सूबे की राजनीति से दूर होते गए और सियासी तौर पर प्रदेश की राजनीति में हाशिए पर पहुंचते गए।
लोकसभा चुनाव में जब कांग्रेस के लोकप्रिय चेहरे सिंधिया को अपनी पारंपरिक सीट गुना-शिवपुरी में अपने ही चेले केपी यादव के हाथों हार का सामना करना पड़ा तो मानो सिंधिया के पैरों तले सियासी जमीन ही खिसक गई। हार के बाद सिंधिया सन्नाटे में आ गए। इस हार का अंदाजा न तो सिंधिया को था न हीं उनके समर्थकों को। सिंधिया के राजनीतिक करियर में ये पहली हार थी और इस हार ने सिंधिया को एक तरह सियासी तौर पर पार्टी में हाशिए पर पहुंचा दिया।

सियासी भंवर में सिंधिया: ज्योतिरादित्य सिंधिया जिनको राहुल गांधी का काफी करीबी माना जाता है अब एक सियासी भंवर में फंस चुके हैं। दिल्ली में पार्टी में नेतृत्व परिवर्तन और सोनिया गांधी के फिर से कमान संभालने के बाद पार्टी में ऐसे नेता जो राहुल गांधी के खेमे के माने जाते थे अब हाशिए पर पहुंच गए हैंं, उनमें से एक नाम ज्योतिरादित्य सिंधिया का भी है।

वक्त को देखते हुए सिंधिया भी अपनी विचारधारा को बदलते हुए दिखाई दिए। जम्मू कश्मीर में 370 हटाने को लेकर जब पूरी कांग्रेस संसद में मोदी सरकार का विरोध कर रही थी, तब सिंधिया ने पलटी मारते हुए मोदी सरकार के फैसले का समर्थन कर दिया।

इस बीच सिंधिया को लेकर सोशल मीडिया पर तमाम तरह की अटकलें भी लगती रहीं जिसमें एक खबर उनके भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से मिलने की भी थी। इन सबके बीच सिंधिया की खमोशी ने सियासी अटकलों को और गरम कर दिया है।

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