मल्टीनेशनल कंपनी में कार्यरत निशित जैन जो एक उच्च अधिकारी हैं, इन दिनों कार्यभार को लेकर काफी तनावग्रस्त रहने लगे थे। कंप्यूटर के आगे बैठे-बैठे शरीर अकड़ जाता था। उन्हें बैकएक की समस्या भी रहने लगी थी।
व्यायाम की कमी से शरीर बीमारियों का द्घर बन जाता है। न केवल शारीरिक बल्कि मानसिक रोग भी आ द्घेरते हैं। उनमें स्ट्रैस और डिप्रेशन तथा एलर्जी कॉमन हैं।
सही पॉस्चर रख के बैठना, सीधे तनकर चलना, कंधे झुकाकर नहीं बल्कि सीधे सिर उठाकर चलना सही तरीका है। जवान व्यक्ति को ऊर्जावान होना चाहिए। इसके लिए योग बहुत मददगार साबित होगा। योग न केवल शरीर और मन को ही मजबूती प्रदान करता है बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी शक्ति प्रदान करता है।
आज ज्यादातर बड़े शहरों की बड़ी- बड़ी कंपनियों में कार्यरत लोगों की जीवन शैली कुछ इस तरह की है जिसमें, तनाव संबंधी प्रॉब्लम और मोटापे की बढ़ती दर चिंता का विषय है।
रिलैक्स होना सीखें
डालास के कूपर क्लीनिक में वैलनेस प्रोग्राम के एक्जीक़्यूटिव डायरेक्टर कानी टाइन के अनुसार हम में से ज्यादातर लोग दिन भर में दस मिनट भी चैन से नहीं बैठते हैं, जबकि ध्यान, योग और विजुएलाइजेशन से हृदयगति और ब्लडप्रेशर कम होता है। ड्यूक यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में पाया गया कि रिलेक्सेशन तकनीकों से डायबिटीज के मरीजों का ब्लड शुगर लेवल एक फीसदी कम हो सकता है।
गहरी सांस लें
टाइन के अनुसार यह स्टे्रस हटाने का सबसे अच्छा और सरल तरीका है। इसे अपनी आदत में शामिल कर लें। इसके लिए आप जब भी द्घड़ी देख रहे हों, कुछ गहरी सांस ले जो आप के पेट तक जाएं, या फिर एकांत में बैठकर गहरी सांस लेते हुए अपनी आती-जाती सांसों पर गौर करें। जब आपका दिमाग भटकने लगे तो धैर्य रखते हुए अपना ध्यान वापस अपनी सांसों पर ले आएं। पांच मिनट की प्रैक्टिस से शुरू करते हुए यह समय आप १० से १५ मिनट तक ले जाएं।
उलझनों को दिमाग से निकालें। उलझनें होती हैं सुलझने के लिए। सोच सोच कर हलकान न हों। अपने पसंदीदा काम में खुद को व्यस्त कर अपना ध्यान डायवर्ट करे। द्घर की अस्त व्यस्त चीजों को करीने से सजाएं। द्घर के छोटे-छोटे कार्य भी तरोताजा कर सकते हैं। म्यूज़िक सुनें, फड़कती धुन के साथ उन्मुक्त होकर झूमें।
गुस्से पर रखें कंट्रोल
गुस्सा आपकी जान का दुश्मन है। एक अध्ययन के अनुसार गुस्सैल प्रकृति के लोगों में कम गुस्सा करने वालों के मुकाबले दिल के दौरे का खतरा दो गुना ज्यादा होता है, लेकिन गुस्से को दबाना भी सेहत के हक में नहीं है। उसे जाहिर करना भी जरूरी है। एक शोध के मुताबिक भावनाओं को दबाकर रखने से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है।
जब आपको किसी बात पर गुस्सा आने लगे तो अपना ध्यान इधर उधर की दूसरी बातों की तरफ डायवर्ट करने का प्रयत्न करें।
मिजाज में बेफिक्री लाएं। इससे जिन्दगी में व्यर्थ की टेंशन से मुक्ति मिलेगी, वे फिजूल बातें जो अनावश्यक रूप से आपकी खुशियों को ग्रहण लगाती हैं। मेड नहीं आई तो कौन सा पहाड़ टूट पड़ा आपके लिये। क्या वो इतनी अहम है। जाम में फंस गए तो क्यों मूड बिगाड़ें। स्टीरियो पर गाने एंजॉय करें या मोबाइल पर किसी प्रियजन से कुछ गपशप कर लें।
रिश्तों में कड़वाहट न आने दें
डीन आर्निश अपनी पुस्तक लव एंड सर्वाइवल में लिखते हैं मैं तो ऐसी किसी दवा के बारे में नहीं जानता जो सेहत पर अच्छे रिश्तों से ज्यादा असर डालती हों। रिश्ते नाते आपके सुरक्षा कवच हैं। इनकी अहमियत को समझें।
जो लोग सोशल होते हैं जिनके यहां रिश्तेदारों का आना जाना लगा रहता है। वे खुश रहते हैं। उनके जीवन में बोरियत नहीं होती। मैन इज ए सोशल एनिमल। इसीलिए अकेलापन व्यक्ति के लिए सबसे बड़ी सज़ा है। दिमागी संतुलन और उसकी ताजगी बनाए रखने के लिए लोगों से इंटरएक्ट करना जरूरी है।
लोगों से मिलने जुलते रहने के अलावा सामाजिक कार्यो में भाग लेना, किसी गु्रप से जुड़े रहना, क्लब किट्टीज में एक्टिव रहें। युनिवर्सिटी ऑफ मिशिगन, एनआर्बर में हुए एक अध्ययन के अनुसार अगर आप हफ्ते में एक दिन महज आधा द्घंटा भी दूसरों की सेवा में बिताते हैं तो आप अपनी जिन्दगी कई साल बढ़ा लेते हैं।
भारत की आध्यात्मिकता आज पश्चिम के लोगों का मुख्य आकर्षण है। कारण है भौतिकता में लिप्त उनके अपने कलचर से उपजी द्घोर अशांति। आध्यात्मिक कामों में व्यस्त रहने से सहनशक्ति बढ़ती है। स्टै्रसलेवल कम होता है, मानसिक शांति मिलती है जिसका शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है।
ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपी एक स्टडी के अनुसार एक योग मंत्र करने या एक कैथोलिक रोजेरी करने से आपकी श्वास की दर करीब ६ सांसें प्रति मिनट धीमी होने लगती है जिसमें सुकून का एहसास तो होता ही है, ब्लड प्रेशर व हृदयगति भी संतुलित होती हैं।
डिप्रेशन को हावी न होने दें
आज के युग में एक कॉमन बीमारी है डिप्रेशन यानी कि अवसाद, द्घोर निराशा की स्थिति। इससे बचने के लिये सोच में पॉजिटिविटी लाएं। व्यायाम करें क्योंकि ड्यूक यूनिवर्सिटी में की गई एक स्टडी बताती है कि व्यायाम डिप्रेशन के लिए उतना ही फायदेमंद है जितनी डिप्रेशन के लिए दी जाने वाली दवाएं। एक्युपंक्चर भी आजमाया जा सकता है और काउंसलिंग तथा मनःचिकित्सक की राय भी ली जा सकती है। अपने को खुशहाल व तंदुरूस्त रखना आपकी अपने प्रति पहली जिम्मेदारी है।
-उषा जैन ‘शीरीं’