मध्य प्रदेश में अब सीधे जनता नहीं चुनेगी महापौर और अध्यक्ष, पढ़े फैसले के पीछे की इनसाइड स्टोरी

मध्यप्रदेश/नगर संवाददाता : मध्य प्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव को लेकर कमलनाथ सरकार ने बड़ा फैसला किया है। नगरीय निकाय चुनाव से पहले कमलनाथ कैबिनेट ने नगरीय निकाय एक्ट में बदलाव के प्रस्ताव को अपनी मंजूरी दे दी है। सरकार के इस फैसले के बाद अब सूबे में नगरीय निकायों में अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर और अध्यक्ष के चुनाव का रास्ता साफ हो गया है।

कैबिनेट के इस फैसले के बाद अब एक बार फिर प्रदेश में फिर महापौरों का चुनाव जनता के हाथों नहीं होकर पार्षदों के हाथों होगा। अभी तक प्रदेश में जनता वोट कर सीधे महापौर और नगर पालिक अध्यक्ष को चुनती थी। कमलनाथ कैबिनेट की बैठक के बाद जनसंपर्क मंत्री पीसी शर्मा ने कैबिनेट के फैसलों के जानकारी देते हुए कहा कि निकाय चुनाव से दो महीने पहले परसीमन कराया जाएगा।
शिवराज ने सरकार के फैसले का किया विरोध-नगरीय निकाय चुनाव में बदलाव को लेकर पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कमलनाथ सरकार पर निशाना साधा है। शिवराज ने कहा कि निकाय चुनाव में कांग्रेस ने हार के डर से यह फैसला किया है। शिवराज ने कहा कि कांग्रेस ने निकाय चुनाव में खरीद फरोख्त, जोड़तोड़ की राजनीति और धांधली को बढ़ावा देने के लिए यह फैसला किया है। उन्होंने सरकार से मांग की है इस निर्णय को बदलकर महापौर और अध्यक्ष का चुनाव पहले की तरह लोगों से कराए।
इसके साथ ही भोपाल महापौर आलोक शर्मा ने भी कांग्रेस सरकार के इस फैसले पर सवाल उठाए है। उन्होंने कहा कि यह जनता के अधिकारों पर कुठराघात है और वह इस फैसले का हर स्तर पर विरोध करेंगे।
फैसले के पीछे की इनसाइड स्टोरी-मध्य प्रदेश में 15 साल बाद सत्ता में वापस लौटी कांग्रेस सरकार के इस फैसले के पीछे सियासी गणित है। कांग्रेस अप्रत्यक्ष प्रणाली से महापौर का चुनाव कराए जाने के पीछे अपना राजनीतिक फायदा देख रही है।

वरिष्ठ पत्रकार शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि सरकार के इस फैसले के पीछे एक सोची समझी रणनीति है। वह कहते हैं कि कांग्रेस को मालूम है जमीनी स्तर पर उसका संगठन नहीं है। ऐसी स्थिति में सरकार में आने के बाद कांग्रेस ने अपना कैडर खड़ी करनी को कोशिश की लेकिन वह इसमें सफल नहीं हो सकी।

वह कहते हैं कि सीधे चुनाव में एक लोकप्रिय चेहरा और मजबूत संगठन दोनों होना चाहिए लेकिन कांग्रेस के पास इस वक्त इन दोनों का अभाव दिखता है। ऐसे में इन दोनों की अनुपस्थित में एक तरीका यह है कि सत्तापोषित प्रत्याशी खड़ा किया जाए। वह कहते हैं कि दूसरे शब्दों में इसको चुनाव में संगठन के स्थान सत्ता के उपयोग करनी की रणनीति के तौर पर देख जा सकता है।

शिवअनुराग पटैरिया कहते हैं कि भले ही कांग्रेस सरकार ने निकाय चुनाव में अप्रत्यक्ष निर्वाचन का रास्ता अख्तियार किया हो लेकिन इस फैसले से कांग्रेस दो कदम पीछे हटते हुए दिखाई दे रही है क्योंकि राजीव गांधी ने नगरीय निकायों में प्रत्यक्ष चुनाव की बात कही थी।

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