नई दिल्ली, नगर संवाददाता: यमुना के पानी में अमोनिया का स्तर 10 पीपीएम तक पहुंच गया है। इसके चलते दिल्ली के वजीराबाद और चंद्रावल संयंत्रों की क्षमता 50 फीसदी तक घट गई है। पानी में अमोनिया का स्तर 0.5 से 0.75 पीपीएम के बीच होना चाहिए। दिल्ली जल बोर्ड के उपाध्यक्ष राघव चड्ढा के मुताबिक, जल बोर्ड ने हरियाणा सरकार और उसके अधिकारियों और इंजीनियरों से कई बार बात कर इस समस्या का निदान करने की अपील की, लेकिन हरियाणा सरकार ने अब तक कोई ठोस कदम नहीं उठाया है।
उनका कहना था कि इसके बाद उन्होंने बुधवार को शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है। उन्होंने कहा कि पिछले कुछ दिनों से हम देख रहे हैं कि हरियाणा की ओर से यमुना में जो पानी दिल्ली आता है, उसमें प्रदूषण की मात्रा बहुत ज्यादा है। पानी में अमोनिया का स्तर बहुत ज्यादा बढ़ गया है, जिसके चलते दिल्ली के अंदर जलापूर्ति करने में थोड़ी समस्या आ रही है। हमारे दो मुख्य वाटर ट्रीटमेंट प्लांट वजीराबाद और चंद्रावल में पानी का उत्पादन होता है। इन दोनों वाटर ट्रीटमेंट प्लांट (जल शोधन संयंत्र) की पानी की उत्पादन क्षमता घट गई है। जहां पहले दोनों प्लांट 100 प्रतिशत क्षमता के साथ उत्पादन कर रहे थे, वहीं आज दोनों प्लांट 50 प्रतिशत क्षमता के साथ काम कर रहे हैं।
राघव चड्ढा ने कहा कि दिल्ली लैंडलॉक्ड शहर है। दिल्ली के पानी के मामले में अन्य राज्यों से आ रही जल निकायों और नदियों पर निर्भर होता है। हरियाणा की ओर से यमुना का पानी जो आता है, उसमें प्रदूषण बहुत मिल रहा है। पानी में प्रदूषण का स्तर बहुत ज्यादा है। इसे तकनीकी भाषा में अमोनिया कहते हैं। प्रदूषण को अगर मापें तो इसका इंडेक्स पीपीएम होता है। पानी का पीपीएम औसतन 0.5 से लेकर 0.75 तक होता है। वाटर ट्रीटमेंट प्लांट उस पानी को आराम से साफ करके पीने लायक मीठे पानी का उत्पादन करते हैं। लेकिन, आज हरियाणा द्वारा उस पानी में इतना प्रदूषण, अमोनिया डाला गया है कि पीपीएम का स्तर 0.5-0.75 से बढ़कर 10 पीपीएम तक पहुंच गया है।
उनका कहना था कि उत्पादन क्षमता में लगातार समस्या आ रही है। इसे लेकर हरियाणा सरकार का दरवाजा खटखटाया। हरियाणा सरकार के अधिकारियों, इंजीनियरों से कई बार अनुरोध भी किया कि इस स्थिति का संज्ञान लें। दिल्ली की दो करोड़ जनता को हरियाणा सरकार की लापरवाही के चलते पानी ठीक नहीं मिल पा रहा है। पानी की सप्लाई में कमी महसूस हो रही है, लेकिन हरियाणा सरकार ने कुछ बहुत ठोस कदम इस दिशा में अब तक नहीं उठाया है, जिसके चलते दिल्ली जल बोर्ड को सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना पड़ा है।