जम्मू/नगर संवाददाता : 5 अगस्त को धारा 370 हटाए जाने के बाद से कश्मीर में बने हुए हालात और हड़तालों के कारण कश्मीर को प्रतिदिन 150 करोड़ रुपए का नुक्सान प्रतिदिन झेलना पड़ रहा है। आंकड़ों के मुताबिक 120 दिनों में कश्मीरियों को 17878 करोड़ की चपत लग चुकी है।
कश्मीर चैंबर ऑफ कामर्स ने कहा कि राज्य से अनुच्छेद 370 हटने के बाद कश्मीर घाटी में पिछले चार माह में 17, 878 करोड़ रुपए का नुकसान हुआ है।
5 अगस्त के बाद की परिस्थितियों पर एक व्यापक रिपोर्ट जारी करते हुए चैंबर ने कहा कि नुकसान का आकलन जम्मू और कश्मीर के सकल घरेलू उत्पाद (2017-18) के आधार पर किया गया है। अध्ययन में कश्मीर घाटी के 10 जिलों को शामिल किया गया है। इसमें प्रदेश की कुल आबादी का 55 प्रतिशत शामिल है। गणना के लिए 120 दिनों का समय अवधि माना गया है।
केसीसीआई ने कहा कि इस रिपोर्ट में किसानों को शामिल नहीं किया गया है। घाटी का पर्यटन क्षेत्र जर्जर है। केंद्र सरकार ने जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को 5 अगस्त को हटाया गया था। यहां पर अब अनुच्छेद 370 हटने के चार माह बाद भी अभी तक स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है। यहां पर सामान्य जनजीवन के साथ ही साथ व्यापार में स्थिति सही नहीं हो पाई है। अनुच्छेद 370 हटने के बाद यहां पर बिजनेस पूरी तरह खराब हो गई है। यहां पर इस समय पर्यटन का सेक्टर पूरी तरह से जर्जर हो गया है।
दरअसल 5 अगस्त को जम्मू कश्मीर के दो टुकड़े कर उसकी पहचान खत्म करने की कवायद के साथ ही यह बंद आरंभ हो गया था। इस बंद के लिए किसी अलगाववादी नेता या फिर हुर्रियती नेताओं ने कोई आह्वान नहीं किया था। हालांकि अब सरकार दावा करती है कि लोगों को इसके लिए आतंकी मजबूर कर रहे हैं।
सच्चाई यह है कि अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के विरोध में यह सब हो रहा है। वैसे किसी ने सोचा नहीं था कि कश्मीर इस तरह से प्रतिक्रिया देगा और ‘अवज्ञा आंदोलन’ चलाएगा। कश्मीरी प्रतिदिन सुबह 2 से 3 घंटों के लिए अपने कारोबार को खोलते हैं और फिर शाम को भी दो घंटों के लिए। यह बात अलग है कि इस अवधि को कई पक्ष कश्मीर में स्थिति का सामान्य होना मान लेते हैं। पर इस 3 से 4 घंटों के व्यापार के बावजूद कश्मीर को प्रतिदिन अनुमानतः डेढ़ सौ करेाड़ का नुकसान झेलना पड़ रहा है।
कश्मीर चैम्बर्स के अध्यक्ष शेख आशिक हुसैन की माने तो यह नुक्सान और भी ज्यादा हो सकता है जब सभी जिलों से सूचनाएं एकत्र की जाएंगीं। दरअसल कश्मीर में संचार माध्यमों पर अभी भी पाबंदी होने के कारण अभी तक बाकी जिलों व तहसीलों से सूचनाएं एकत्र करना बहुत कठिन कार्य इसलिए भी बन चुका है क्योंकि अभी भी कश्मीरियों के अन्य जिलों में आने-जाने पर अघोषित पाबंदियां हैं। खासकर उन नेताओं और व्यापारियों पर जो अभी जेलों से बाहर हैं।