महाराष्ट्र में ‘किंगमेकर’ शिवसेना के आदित्य ठाकरे क्या बन पाएंगे पहले मुख्यमंत्री

महाराष्ट्र/नगर संवाददाता : महाराष्ट्र में 1966 में अपनी स्थापना के बाद लंबे समय से किंगमेकर की भूमिका में रहने वाले शिवेसना अब खुद किंग (मुख्यमंत्री) की दौड़ में शामिल होती दिख रही है। महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन कर चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी में जुटी शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे का वह बयान इन दिनों खूब सुर्खियों में जिसमें उन्होंने शिवसेना के संस्थापक बालासाहेब ठाकरे के सपने को याद करते हुए एक दिन किसी शिवसैनिक के मुख्यमंत्री बनाने की बात कही थी। पार्टी कार्यकर्ताओं को संबोधित करते हुए उद्धव ठाकरे ने कहा था कि ‘वह एक शिवसैनिक को महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाने का अपने पिता और शिवसेना के पूर्व प्रमुख बाल ठाकरे से किया वादा पूरा करेंगे’।
आदित्य ठाकरे मुख्यमंत्री की रेस में – शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे के किसी शिवसैनिक को मुख्यमंत्री बनाने के बयान के कुछ घंटों के अंदर ही पार्टी महाराष्ट्र युवा सेना के अध्यक्ष और पार्टी सुप्रीमों उद्धव ठाकरे के बेटे आदित्य ठाकरे के वर्ली विधानसभा सीट से चुनाव लड़ने का एलान कर दिया। शिवसेना के 53 साल के इतिहास में यह पहला मौका होगा जब ठाकरे परिवार का कोई सदस्य चुनावी मैदान में उतरेगा। महाराष्ट्र की राजनीति में लंबे समय से किंगमेकर (मुख्यमंत्री) बनाने में अहम भूमिका निभाने वाले ठाकरे परिवार के सबसे युवा चेहरे आदित्य ठाकरे अब परंपरा तोड़ चुनाव मैदान में उतरने जा रहे है।
ऐसा नहीं है कि आदित्य ठाकेर के चुनाव लड़ने का एलान अचानक कर दिया गया। चुनाव की तारीखों के एलान से पहले आदित्य ठाकरे अपनी जन आशीर्वाद यात्रा के जरिए पूरे प्रदेश को नाप चुके है। आदित्य ठाकरे ने अपनी इस यात्रा के जरिए शिवसेना और सैनिकों की छवि को बदलने की पूरी कोशिश की। शिवसेना क यूथ विंग युवा सेना के अध्यक्ष 29 साल के आदित्य ठाकरे ने चुनाव से पहले अपने आदित्य संवाद के जरिए अब लोगों के बीच जाना पहचाना चेहरा बन चुके है। आदित्य ठाकरे के चुनाव लड़ने के एलान के साथ ही यह साफ हो गया है कि क्षेत्रीय कट्टरता की सियासत के लिए अपनी पहचान रखने वाली शिवसेना की राजनीति के आगे के ध्वजावाहक आदित्य ठाकरे ही होंगे।

आदित्य ठाकरे ऐसे समय चुनावी मैदान में उतरने जा रहे है जब महाराष्ट्र में शिवसेना और भाजपा के बीच मुख्यमंत्री पद की लिए लड़ाई चल रही है। पिछले दिनों मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस साफ कर चुके है कि मुख्यमंत्री पद उन्होंने अपने लिए आरक्षित कर रखा है जबकि उपमुख्यमंत्री पद वह शिवसेना के लिए छोड़ चुके है, लेकिन शिवसेना की नजर अब मुख्यमंत्री पद पर जा टिकी है। शिवसेना नेता संजय राउत का पिछले दिनों यह बयान कि ठाकरे उप पद नहीं लेते और परिवार का सदस्य हमेशा प्रमुख होता है बयान पार्टी के आगे की राजनीति का साफ संकेत देता है।
सत्ता में पिछले पांच सालों से काबिज भाजपा और शिवसेना गठबंधन को लेकर भले ही दोनों ही दल आश्वस्त नजर आ रहे हो लेकिन पेंच अब भी फंसा हुआ है। शिवसेना गठबंधन में बराबरी की सीट की मांग कर रहा है

तो भाजपा किसी भी हालात में शिवसेना को 125 से अधिक सीटें देने के लिए तैयार नहीं दिख रही है। दोनों ही दल अधिक से अधिक से सीट पर चुनाव लड़कर चुनाव परिणाम के बाद मुख्यमंत्री पद के लिए अपनी दावेदारी मजबूत करना चाह रहे है।
शिवसेना अकेले लड़ने को भी तैयार – 2014 में अकेले चुनाव मैदान में उतरी शिवसेना इस बार भी गठबंधन में सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर अकेले चुनाव लड़ने का संकेत दे चुकी है। पिछले दिनों सभी 288 सीटों पर पार्टी के टिकट दावेदारों को संबोधित करते हुए पार्टी प्रमुख उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र में शिवसैनिक के मुख्यमंत्री बनने की बात कह चुके है। अब तक गठबंधन नहीं होने के चलते शिवसेना ने भाजपा पर दबाव बढ़ाते हुए अपने उम्मीदवारों को पार्टी का बी फॉर्म देना भी शुरु कर दिया है इसके साथ उद्धव ठाकरे ने पार्टी के सभी मौजूदा विधायकों को चुनाव लड़ने की अपनी मंजूरी दे दी है। महाराष्ट्र की सियासत के जानकार इसे शिवसेना की दबावर का राजनीति का हिस्सा मानते है। महाराष्ट्र विधानसभा की 288 सदस्यीय विधानसभा में वर्तमान में भाजपा के पास 122 सीटें है और शिवसेना के पास 63 सीटें है। अब तक जो खबरें छन कर बाहर आई है उसके मुताबिक गठबंधन में भाजपा 144 सीटों पर शिवसेना 124 सीटों पर चुनाव लड़ सकती है।

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