लखनऊ, उत्तर प्रदेश/नगर संवाददाताः बसपा सुप्रीमों मायावती ने नोटबंदी के 50 दिन बाद नववर्ष की पूर्व संध्या पर पीएम नरेद्र मोदी के देश के नाम संबोधन को मायूस करने वाला और निराशाजनक करार दिया है। उन्होंने कहा कि पिछले 50 दिनों से नोटबंदी की जबर्दस्त पीड़ा झेल रहे मुल्क की 90 प्रतिशत आम जनता को नववर्ष में कोई राहत देने की बहु-प्रतीक्षित खबर नहीं मिलने से अनिश्चितता का माहौल उत्पन्न हुआ है। परेशानी अभी काफी दिनों तक जारी रहने वाला है, जो देशहित में नहीं है। मायावती ने रविवार को बयान जारी कर कहा कि प्रधानमंत्री का सम्बोधन हमेशा की तरह उपदेशात्मक ज्यादा था। इतने लंबे भाषण में ऐसा कुछ भी नहीं था, जिससे देश को नये वर्ष में उम्मीद की नई किरण जगे। देश नीरसता व अविश्वसनीयता एवं अनिश्चितता के माहौल से उभर सके। निश्चित तौर पर नोटबंदी के जबर्दस्त जंजाल के बाद नया साल देश के लिये नई उम्मीद लेकर नहीं आया है, जिसके लिये केवल केन्द्र की भाजपा सरकार की अपरिपक्वता व उसकी अहंकारी प्रवृत्ति जिम्मेदार है। मायावती ने कहा कि कुल मिलाकर सवाल यही उठता है कि देश की 90 प्रतिशत गरीबों, मजदूरों, व्यापारियों व अन्य मेहनतकश आम जनता ने, प्रधानमंत्री के शब्दों में जिस ‘शुद्धि यज्ञ’ में भाग लिया और जंजालों को काफी लम्बे समय तक झेला, उन्हें अन्ततः क्या मिला? आखिर उनका क्या भला हुआ? प्रधानमंत्री ने सिर्फ लोगों का ध्यान बांटने के लिये कुछ ब्याज रियायतें देने की घोषणा की। क्या ऐसी बातों के लिये राष्ट्र के नाम सम्बोधन जरूरी था? प्रधानमंत्री अपनी किसी भी नसीहत व उपदेश को सबसे पहले अपने ऊपर अपनाने की सर्वमान्य नीति को नहीं मानते। यही कारण है कि उनकी बातें केवल सरकारी ढिंढोरा बनकर रह जाती हैं। आखिर क्या कारण है कि वह भाजपा व आरएसएस को डिजिटल लेन-देन के लिये बाध्य नहीं कर पा रहे हैं? देश के सवा सौ करोड़ आमजनता को नगद के बजाय, डिजिटल लेन-देन की सूखी नसीहत देते रहते हैं, लेकिन भाजपा व आरएसएस का आस्तित्व तो कैश अर्थात नगदी लेन-देन पर ही ज्यादातर टिका हुआ है? इसका वह क्या करने वाले हैं, यह नहीं बताते हैं। नरेंद्र मोदी को अपना पक्ष मजबूत करना चाहिये ताकि उनकी कथनी और करनी में अंतर न रहे।