नई दिल्ली, नगर संवाददाता : 1857 के स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों में एक पत्रकार.संपादक का नाम भी सर्व प्रथम दर्ज है जिनको अंग्रेज़ों ने पकड़ कर बिना मुकदमा चलाए ही मार डाला था। इस आज़ादी की लड़ाई के पहले शहीद पत्रकार का नाम मौलवी मोहम्मद बाक़िर है। जिनकी 164वीं पुण्यतिथि के अवसर पर आज प्रेस क्लब आफ इंडिया में एक आयोजन हुआ जिसमें प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया के सदस्य जय शंकर गुप्ता, प्रेस क्लब आफ इंडिया के उमाकांत लखेड़ा, अरविंद कुमार सिंह, ए.यू आसिफ़, सतीश जैकब, एजाज अहमद असलम, मीम अफ़जल, एस के पांडे, सहित कई वरिष्ठ संपादकों, पत्रकारों और लेखकों ने मौलवी मोहम्मद बाक़िर को याद करते हुए उनको नमन किया और श्रद्धांजलि दी।
प्रसिद्ध पत्रकार मासूम मुरादाबादी की पुस्तक ‘उर्दू सहाफत और जंगे आज़ादी 1857’ का लोकार्पण करते हुए।
इस अवसर पर मौलवी बाक़िर मेमोरियल अवार्ड भी दिए गए। कई वरिष्ठ संपादकों और लेखकों ने मौलवी मोहम्मद बाक़िर के संघर्ष भरे पत्रकारिता और देश सेवा वाले जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि उनको कभी भुलाया नहीं जा सकेगा। लेखक मासूम मुरादाबादी, और कुरबान अली ने इस पर अफसोस प्रकट किया कि उनको जितना सम्मान मिलना चाहिए था उतना नहीं मिला। इस अवसर पर मासूम मुरादाबादी की पुस्तक श्‘र्दू सहाफत और जंगे आज़ादी 1857’ का लोकार्पण भी किया गया।
देश की आज़ादी के प्रथम संग्राम में अपनी शहादत देने वाले पत्रकार मौलवी मोहम्मद बाक़िर का जन्म में दिल्ली में हुआ। उनकी शिक्षा दिल्ली कॉलेज, दिल्ली में हुई। अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद उन्होंने दिल्ली कॉलेज में अध्यापन और राजस्व विभाग में तहसीलदार के रूप में भी कई नौकरियां कीं, लेकिन उन्होंने जिसको अपना लक्ष्य बनाया वह था पत्रकारिता और देश सेवा। जिसके लिये उनको मिली शहादत। 1836 में जब अंग्रेज़ों की सरकार ने प्रेस अधिनियम में संशोधन के बाद समाचार पत्रों के प्रकाशन की अनुमति दी, तो उन्होंने पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश करके अपनी ज़िम्मेदारी और जागरूकता का कर्तव्य अंजाम दिया।
जनवरी 1837 में मौलवी मुहम्मद बाक़िर ने उर्दू साप्ताहिक ‘दिल्ली अख़बार’ शुरू किया। 3 मई 1840 को इसका नाम बदलकर ‘दिल्ली उर्दू अखबार’ कर दिया गया। जबकि 12 जुलाई 1857 को दिल्ली उर्दू अखबार का नाम बदलकर मुगल सम्राट बहादुर शाह के नाम पर ‘अखबार उज़्ज़फर’ कर दिया गया। और फिर इसके दस आखिरी अंक इसी नाम से सामने आए। दिल्ली उर्दू अखबार राष्ट्र की भावनाओं का उद्घोषक था।
देश के लोगों में राजनीतिक जागृति पैदा करने और उन्हें विदेशी शासकों के खिलाफ़ एकजुट करने में अखबार ने महत्वपूर्ण और अग्रणी भूमिका निभाई। इसने स्वतंत्रता के दीप को रौशनी दी। और ब्रिटिश शासन के खिलाफ़ आवाज़ को मजबूती प्रदान की। जिससे लोगों में विरोध और आन्दोलन करने का साहस और आत्मविश्वास आया। और 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम जिसे गदर का नाम भी दिया गया, के तुरंत बाद यह स्वयं एक स्वतंत्रता सेनानी बन गया।
10 मई 1857 को मेरठ में प्रज्वलित स्वतंत्रता की आग ने मुजाहिदीन को 11 मई तक दिल्ली पहुंचने में मदद की। और उसके बाद देश में घटनाओं का एक बड़ा सिलसिला चला। जिसने अंग्रेज़ों के पैरों के नीचे की जमीन को हिला दिया।और वह पूरी तरह बौखला कर बर्बरता पर उतर गए। मौलवी मुहम्मद बाक़िर आज़ादी के इस आह्वान में अपनी पत्रकारिता यानि अपनी लेखनी से सतत संघर्ष करने में व्यस्त रहे । 17 मई 1857 की अपनी रिपोर्ट में दिल्ली उर्दू अखबार ने मुजाहिदीन की प्रगति की विस्तृत रिपोर्ट दी। उन्होंने अंग्रेज़ों के कार्यों की निंदा करते हुए और देश की स्वतंत्रता के लिए लोगों और सिपाहियों को अंग्रेज़ों के खिलाफ़ लड़ने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए लगातार लेख लिखे।
मौलवी मुहम्मद बाक़िर देश प्रेम और हिंदू मुस्लिम एकता के बहुत बड़े पैरोकार थे। जब स्वतंत्रता संग्राम को कमजोर करने के लिए अंग्रेजों ने जनता के बीच फूट के बीज बोने शुरू किए तो दिल्ली उर्दू अखबार ने उन्हें चुनौती दी और औपनिवेशिक शासकों की रणनीति के खिलाफ़ लोगों को सचेत किया। इन सभी कार्यों से अंग्रेज़, मौलवी बाकर से सख़्त नाराज़ हो गये।
04 जून 1857 को मौलवी मुहम्मद बाक़िर ने अंग्रेज़ों की साजिशों से जनता को आगाह किया और उनसे एकजुट रहने की अपील की। मौलवी मुहम्मद बाक़िर को 14 सितंबर 1857 को विद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया। और बिना मुकदमा चलाये ही 16 सितंबर 1857 को मेजर विलियम एसआर हडसन ने उनकी हत्या कर दी। और मौलवी मोहम्मद बाक़िर पहले ऐसे पत्रकार, संपादक बने जिन्होंने अपने जीवन का बलिदान अपने देश भारत की स्वतंत्रता के लिए दिया। मौलवी बाक़िर की शहादत इतिहास के सुनहरे यादगारी पन्नों में दर्ज रहेगी।