नूंह, हरियाणा, नगर संवाददाता : सोमवार को आर्य समाज मंदिर में नूंह में जन्माष्टमी का पर्व उत्साह के साथ मनाया गया। यज्ञ के बाद कन्हैया लाल शर्मा और किशन चंद ने भक्ति के भजन सुनाए। आर्य समाज के प्रधान ज्ञानचंद आर्य ने भगवान श्रीकृष्ण की कथाओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि योगेश्वर श्रीकृष्ण के जीवन से बहुत ज्ञान मिलता है। उनका जीवन जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत संघर्षमय रहा, लेकिन वह संघर्षों से कभी घबराए नहीं। मात्र 12 वर्ष की उम्र में श्रीकृष्ण ने कंस का वध कर अपने नाना उग्रसेन को राजगद्दी सौंप दी। उसके पश्चात दोनों भाई श्रीकृष्ण और बलराम पढ़ने के लिए संदीपनि ऋषि के आश्रम में गए। पूरी विद्या प्राप्त करने के बाद गुरुजी ने जब गुरु दक्षिणा के रूप में अपना खोया हुआ पुत्र मांगा तो श्रीकृष्ण ने देवलोक जाकर बलपूर्वक उनके पुत्र को प्राप्त किया और गुरु को प्रदान किया।
मथुरा में कंस के श्वसुर जरासंध के आक्रमणों से जनता को बचाने के लिए श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी की स्थापना की, लेकिन वहां भी स्वयं शासन करने के बजाय एक परिषद द्वारा शासन किया गया। उन्होंने बताया कि पांडवों के राजसूय यज्ञ में भीष्म पितामह के निर्णयानुसार कृष्ण को अग्रपूजा का अधिकार दिया गया। अपने निर्णय में पितामह ने कहा था कि वेद, वेदांग और अन्य शास्त्रों में और शक्ति में इस समय कोई भी कृष्ण के समकक्ष नही है। श्रीकृष्ण योग, वेद, शास्त्रों में तो पारंगत थे ही, इसके साथ ही वो मल्लयुद्ध, गदा युद्ध, तीर-कमान युद्ध आदि सभी प्रकार की युद्ध कला में निपुण थे।
ज्ञानचंद आर्य ने कहा कि श्रीकृष्ण एक श्रेष्ठ याज्ञिक भी थे। महाभारत के अनुसार जहां भी यज्ञ का समय होता था, वह अपना काफिला रोककर पहले यज्ञ करते थे। हमें भी उनका अनुकरण करना चाहिए। युद्ध में भी श्रीकृष्ण ने प्रतिज्ञा की थी कि मैं युद्ध नहीं करूंगा लेकिन पांडवों की विजय में श्रीकृष्ण की ही भूमिका थी। जगह-जगह पर उन्होंने अपनी विद्वता से पांडवों को विजय दिलाई ऐसे महान योगेश्वर का आज जन्म दिवस है। हमें उनके बताए मार्ग पर चलना चाहिए और यज्ञ के प्रति श्रद्धा और विश्वास होना चाहिए। योगेश्वर श्रीकृष्ण की जय। कार्यक्रम में मनोज गर्ग, मास्टर जय भगवान, मास्टर ओमप्रकाश बत्रा, सुरेश गर्ग, सुरेश अग्रवाल, प्रवीण, किशन, कन्हैया लाल, समय चंद, लाल चंद, राकेश बघेल वैदिका आर्य आदि उपस्थित रहे।