नई दिल्ली, नगर संवाददाता: यमुना में झाग को ष्काफी हद तकष् कम करने के लिए उत्तर प्रदेश, हरियाणा और दिल्ली में सीवेज शोधन संयंत्रों (एसटीपी) को उन्नत बनाने में तीन से पांच साल का समय लगेगा। दिल्ली सरकार ने यह कहा है। दिल्ली, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में सीवर के अशोधित पानी में फॉस्फेट और अम्ल की मौजूदगी के कारण नदी में झाग बनते हैं। दिल्ली सरकार ने राष्ट्रीय हरित अधिकरण (एनजीटी) में एक हलफनामा दाखिल किया है। इसमें कहा गया है कि यमुना में झाग बनने की समस्या को दूर करने के वास्ते नए मानकों के अनुरूप दिल्ली, उत्तर प्रदेश और हरियाणा में सभी एसटीपी को उन्नत बनाने में तीन से पांच साल का समय लगेगा जो कोष की उपलब्धता पर निर्भर करेगा। हफलनामे में कहा गया है कि पेड़ काटने की अनुमति में देरी, कोविड-19 के कारण लगाए गए लॉकडाउन, वित्तीय दिक्कतों और श्रमिकों के पलायन के कारण दिल्ली में चार महत्वपूर्ण सीवेज शोधन संयंत्रों को उन्नत बनाने का काम धीमा हुआ। इनमें कोंडली, रिठाला, ओखला और कोरोनेशन पिलर के एसटीपी शामिल हैं। अनुबंध के मुताबिक, कोरोनेशन पिलर एसटीपी को उन्नत बनाने का काम 31 मार्च तक पूरा किया जाना है। जबकि, कोंडली, रिठाला और ओखला एसटीपी का काम दिसंबर 2022 तक पूरा किया जाना है। दिल्ली सरकार के हलफनामे में कहा गया है कि रिठाला, कोंडली, कोरोनेशन पिलर और ओखला में एसटीपी की कुल क्षमता 279 मिलियन गैलन प्रति दिन की है और उनको उन्नत किया जा रहा है। रिठाला और ओखला के मामले में पेड़ काटने की अनुमति के लिए फाइलें क्रमशः 23 सितंबर और 29 सितंबर 2020 से पर्यावरण एवं वन विभाग में लंबित हैं। दिल्ली के शेष 16 एसटीपी को उन्नत बनाने के लिए एक कार्य योजना तैयार की गई है और एनजीटी द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी समिति को सौंपी जा चुकी है।