नई दिल्ली, नगर संवाददाता: संसद को केंद्रीय सूची में अंकित बिषयों पर कानून बनाने का अधिकार है।लोकतांत्रिक देश में कानून जनता के हित को ध्यान रखते हुये ही कानून बनाया जाता है।आमतौर पर कोई भी पार्टी सत्ता मे आते है तो वह देश व प्रदेशों के लिये काननू तब बनाता है जब वहां पर एक सामाजिक आवाज उठ रही हो या उस पार्टी मे चुनाव के पहले अपने घोषणा पत्र मे लिखा हो। लेकिन 3 कृषि कानून के संबंध किसी राजनीतिक दल व किसान संगठनों ने कोई मांग नही की कि ऐसा कृषि कानून बनाने की जरूरत है और 2014 या 2019 मे भी लोक सभा चुनाव के दौरान भाजपा के घोषणा पत्र में भी था।
श्री शर्मा कहते हैं जो कायदे कानून बन रहे है वे अंदर ही अंदर कारपोरेट घरानों के इशारे से बन रहे हैं।बहुत पहले नीति आयोग ने यह सुझाव दिया था कि धान की फसल कम बोना चाहिये क्योंकि धान की फसल के लिये ज्यादा पानी लगता है जिससे भूजल नीचे चला जाता है और इसी के तहत इसी साल खरीफ की फसल के समय हरियाणा मुख्य मंत्री खट्टर ने तुगलकी फरमान जारी कर दिया था कि धान की फसल न बोये ।इसके लिये हरियाणा के किसानो पर लाठी गोली चलने के बाद खट्टर बैक फुट पर हुए।
श्री शर्मा कहते हैं कुछ समय पहले बित्त मंत्री ने यह टीवी पर चर्चा की कि सरकारी मंडियो से सरकार को पिंड छुड़ा लेना चाहिए, उसको निजी लोगों के हवाले कर देना चाहिए। जो कानून कारपोरेट घराने के लोग चाहते हैं वह मोदी एंड कंपनी से पहले डील हो जाती है तब वही किसी एनजीओ व अपने ही लोगों से चर्चा करा देते है और फिर उस पर कानून बना दिया जाता है।उसी के संदर्भ ये 3 कृषि कानून लाये गये है इसके लिये किसी राजनीतिक दल व किसान संगठनों ने किसी भी समय ऐसा कानून बनाने के लिये नही कहा था बल्कि अडानी अंबानी जैसे लोगों के इशारे से ये कानून लाये गये हैं।
लोक समाज पार्टी मांग करती है कि देश के किसानो से ही देश की अर्थव्यवस्था टिकी हुयी है कोरोना काल मे ही हर क्षेत्र दगा दे दिया था लेकिन कृषि क्षेत्र सरकार की अर्थव्यवस्था मे मजबूती से डटा रहा।इसलिये ये तीनो कानून वापस लिये जाय और इनसे सलाह मशविरा करके ही नये कानून फिर से बनाये जाये।