नैनीताल/नगर संवाददाता : उत्तराखंड में वस्तु एवं सेवाकर (जीएसटी) के नाम पर जबर्दस्त फर्जीवाड़ा प्रकाश में आया है। सरकार ने 70 संस्थानों पर छापा मारकर लगभग 8,000 करोड़ का फर्जीवाड़ा पकड़ा है। इस फर्जीवाड़े की आंच अन्य राज्यों दिल्ली, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु, महाराष्ट्र और राजस्थान तक पहुंच रही है।
वित्त सचिव अमित नेगी के निर्देश पर कर आयुक्त जीएसटी सौजन्या की 55 टीमों ने कुल 70 फर्मों, उधमसिंहनगर में 68 और देहरादून में 2 फर्मों के कार्यालयों पर छापे मारे। व्यापार स्थल पर किए गए सर्वे में इस फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ। वित्त सचिव एवं कर आयुक्त सौजन्या ने बताया ने सोमवार को यह चौंकाने वाला खुलासा किया है। उन्होंने बताया कि वित्त मंत्रालय को जीएसटी में फर्जीवाड़े की लगातार शिकायतें मिल रही थीं।
सरकार ने इस मामले की गोपनीय जांच कराई तो शिकायत सही मिलीं। इसके बाद जीएसटी आयुक्त की 55 टीमों ने आज 70 व्यापारिक संस्थानों पर एक साथ छापा मारा और सर्वेक्षण में 8000 करोड़ के फर्जीवाड़ा सामने आया है। उन्होंने बताया कि प्रदेश में कुछ संस्थाओं की ओर से जीएसटी के तहत फर्जी तरीके से पंजीयन (रजिस्ट्रेशन) करा कर ई.वे बिल के माध्यम से करोड़ों रुपए का फर्जीवाड़ा किया जा रहा है।
इस फर्जीवाड़े की जांच में लगी 55 टीमों के हाथ जो तथ्य लगे हैं वे चौंकाने वाले हैं। वित्त मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार 70 फर्मों द्वारा विगत 2 माह में राज्य और उससे बाहर 8,000 करोड़ के ई.वे बिल बनाए गए हैं। जांच करने पर पता चला कि 70 में से 34 फर्में दिल्ली से मशीनरी एवं कंपाउंड दाना की खरीद कर ई.वे बिल बना रही थीं जिनका मूल्य 1200 करोड़ रुपए आंका गया है। उसके बाद उन फर्मों द्वारा आपस में ही खरीद-बिक्री के साथ बाहर की फर्मों को भी खरीद-बिक्री में शामिल दिखाया जा रहा था जिससे ई.वे बिल के माध्यम से 1,200 करोड़ का यह फर्जीवाड़ा 8,000 करोड़ रुपए तक पहुंच जाता है।
वित्त मंत्रालय की ओर से दी गई जानकारी के अनुसार इस फर्जीवाड़े में 26 फर्मों की ओर से चप्पल की बिक्री अन्य राज्यों आंध्रप्रदेश, राजस्थान, तमिलनाडु और महाराष्ट्र को दिखाई जा रही थी। जानकारी में खुलासा किया गया है कि छापे में मौके पर न तो कोई फर्म पाई गई और न ही कोई पंजीकृत व्यक्ति। इससे स्पष्ट है कि यह फर्जीवाड़ा उत्तराखंड के अलावा अन्य राज्यों दिल्ली, हरियाणा, आंध्रप्रदेश, तमिलनाडु एवं महाराष्ट्र तक फैला है।
जानकारी में खुलासा किया गया है कि इस फर्जीवाड़े की अभी जांच जारी है। जांच पूरी होने के साथ ही सभी राज्यों को रिपोर्ट प्रेषित कर दी जाएगी। इस फर्जीवाड़े में यह भी तथ्य सामने आया कि फर्जी तरीके से बनाए गए ई.वे बिल में प्रयोग किए गए ज्यादातर वाहन पूर्वोत्तर राज्यों में पंजीकृत हैं। इन सभी वाहनों की जांच परिवहन विभाग की ओर से कराई जा रही है। साथ ही इन फर्मों का किरायानामा नोटरी करने वाले की भी जांच की जा रही है।
फजीवाड़े का खुलासा करते हुए जानकारी दी गई है कि जांच में यह भी पता चला है कि कुल 80 लोगों ने 21 मोबाइल नंबर और ई.मेल का प्रयोग करते हुए दो-दो की साझेदारी कर 70 फर्मों का पंजीकरण किया। पंजीकरण करते वक्त दिए गए विवरण के अनुसार सभी साझीदार हरियाणा एवं दिल्ली के रहने वाले हैं। इन्होंने उत्तराखंड में किराए पर व्यापार स्थल दिखाते हुए पंजीकरण प्राप्त किया। एक व्यक्ति ने पृथक पृथक नाम से पृथक पृथक फर्मों में साझेदारी दिखाई। किराए पर लिए गए स्थल की पुष्टि के लिए साक्ष्य के रूप में किरायानामा व बिजली का बिल दिखाया गया।
जांच में चौंकाने वाला तथ्य सामने आया कि किसी भी संपत्ति मालिक ने किसी भी फर्म के साथ ऐसा कोई करार किया ही नहीं है। यह भी तथ्य उजागर हुआ है कि 2017 के बाद ई-वे बिल बनाने की आसान प्रक्रिया को इन्होंने इस फर्जीवाड़ा का माध्यम बनाया है।
वित्त सचिव की ओर से यह भी जानकारी दी गई कि इस फर्जीवाड़े का खुलासा करने वाली टीम में प्रदेश के 12 उपायुक्त, 55 सहायक आयुक्त एवं 55 राज्य कर अधिकारियों की मदद ली गई। इसके साथ ही मुख्यालय स्तर पर 10 अधिकारियों की एक कोर टीम का गठन भी किया गया। कोर टीम पिछले 15 दिन से छापे की तैयारियों में जुटी थी।
कोर टीम में अतिरिक्त आयुक्त विपिन चंद्र, अनिल सिंह एवं उपायुक्त सुनीता पांडे, प्रमोद जोशी, रोहित श्रीवास्तव, सहायक आयुक्त रंजीत नेगी, सुरेश कुमार व देहरादून की एसटीएफ की टीम शामिल थी। विभाग की ओर से यह भी जानकारी दी गई कि फर्जीवाड़े में शामिल लोगों व फर्मों पर कड़ी नजर रखी जा रही है।