दिल्ली/नगर संवददाता : नई दिल्ली, 14 अगस्त ऑटो इंडस्ट्री में अघोषित मंदी से हाहाकार मचा हुआ है। हर तरफ मंदी की बात हो रही है। हालांकि मंदी का कारण क्या है, इसकी चर्चा कम सुनाई पड़ रही है। इस रिपोर्ट में हम आपको बतायेंगे कि ऑटो इंडस्ट्री के हालात इतने बदतर कैसे हुए और फिलहाल सरकार इस समस्या से निपटने के लिए क्या कुछ कदम फिलहाल उठा सकती है।
बुरे वक्त को दूर करने के लिए करें यें उपाय
बता दें कि कारों की बिक्री बीते 19 सालों के सबसे निचले स्तर पर है। ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री के संगठन सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स के मुताबिक जुलाई महीने में पैसेंजर वीइकल्स की सेल में 30.98 पर्सेंट की गिरावट आई है, और कमर्शल वीइकल्स की सेल में भी 25.71 पर्सेंट तक की गिरावट दर्ज की गई। सभी कैटिगरीज में कुल सेल में 18.71 पर्सेंट की गिरावट रही और पूरे देश में 1,825,148 यूनिट्स की बिक्री हुई। बीते 9 महीनों से ऑटो इंडस्ट्री में बिक्री गिरती जा रही है और जुलाई में 30.98 पर्सेंट की गिरावट, पिछले 19 सालों में सबसे बड़ी गिरावट है। दिसंबर 2000 के बाद यह सबसे बड़ी गिरावट है।
अन्य कैटिगरीज
आर्थिक सुस्ती बढ़ने से मीडियम और हेवी कमर्शल वीइकल की बिक्री में 34.4 पर्सेंट की गिरावट आई है और यह 17,722 पर आ गई, जबकि एलसीवी (लाइट कमर्शल वीइकल) की बिक्री 18.7 पर्सेंट घटकर 39,144 पर पहुंच गई। दरअसल, फरवरी 2014 के बाद से ट्रकों और बसों की बिक्री घटनी शुरू हो गई। कुल मिलाकर, पिछले महीने कमर्शल वीइकल्स की बिक्री 25.71 फीसदी गिरकर 56,866 यूनिट्स रह गई। ग्रामीण भारत में मांग का मुख्य इंडिकेटर यानी दोपहिया कारों की कुल बिक्री जुलाई में 16.8 पर्सेंट घटकर 15,11,692 कार रही।
क्या हैं कारण
जुलाई में पैसेंजर वीइकल्स का उत्पादन करीब 17 पर्सेंट कम रहा। देश में तेजी से उपभोक्ता वस्तुओं की मांग घट रही है, जो आर्थिक मंदी का बड़ा संकेत है। पिछले कुछ महीनों में मांग घटने की रफ्तार तेज हुई है और सबसे अहम बात यह है कि वित्तीय संकट से जूझ रहे एनबीएफसी के पास ऑटो डीलरों और कार खरीदारों को कर्ज देने के लिए फंड नहीं है। इसके अलावा, नोटबंदी का असर, जीएसटी के तहत ऊंची टैक्स दरें, ऊंची बीमा लागत और ओला.ऊबर जैसी ऐप बेस्ड कैब सर्विस में तेजी और कमजोर ग्रामीण अर्थव्यवस्था ऑटो इंडस्ट्री के घटते बिक्री आंकड़ों के पीछे प्रमुख कारण हैं।
असर
सोसायटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चर्स के मुताबिकए ऑटो सेक्टर में 10 लाख नौकरियां जाने का खतरा बढ़ गया है। सियाम का कहना है कि स्थिति नहीं सुधरने पर और भी नौकरियां जा सकती हैं। फेडरेशन ऑफ ऑटोमोबाइल डीलर्स एसोसिएशन का दावा है कि तीन महीने (मई से जुलाई) में खुदरा विक्रेताओं ने करीब 2 लाख कर्मचारियों की छंटनी की है। का मानना है कि निकट भविष्य में स्थिति में सुधार की संभावना नहीं है। भविष्य में छंटनी के साथ ही और भी शोरूम बंद हो सकते हैं। के मुताबिक 18 महीने देश में 271 शहरों में 286 शोरूम बंद हो चुके हैं। इसकी वजह से 32 हजार लोगों की नौकरी चली गई थी। 2 लाख नौकरियों की छंटनी इसके अतिरिक्त है।
इंडस्ट्री मांग रही राहत
सुस्ती को देखते हुए ऑटो इंडस्ट्री ने जीएसटी रेट को 28 पर्सेंट से घटाकर 18 पर्सेंट किए जाने की मांग की है ताकि वाहन खरीदना पहले के मुकाबले ज्यादा अफोर्डेबल हो सके और मांग बढ़े। इसके अलावा, इंडस्ट्री ने डीलरों और खरीदारों के लिए कर्ज की राह आसान बनाए जाने की भी मांग की है। उम्मीद की जा रही है कि सरकार इसी हफ्ते ऑटो और हाउजिंग सेक्टरों के लिए राहत पैकेज का ऐलान करेगी। अगर ऐसा होता है तो इंडस्ट्री को थोड़ी राहत मिलेगी। आरबीआई ने भी रेट कट कर इंडस्ट्री को थोड़ी राहत पहुंचाई है। अगले महीने से त्योहारी सीजन शुरू हो रहा है, लेकिन क्या इस सेक्टर के लिए राहत पैकेज के रूप में दिवाली से पहले ही दिवाली आ पाएगी।
ऑटो इंडस्ट्री में मंदी की क्या है प्रमुख वजह
बेरोजगारी, नोटबंदी, के बाद बिगड़े आर्थिक हालात की वजह से विपक्ष की आलोचना झेल चुकी मोदी सरकार एक बार फिर विपक्ष के निशाने पर आ सकती है। ऑटो इंडस्ट्री में मंदी के हालात को देखते हुए केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार चौतरफा हमले का सामना करना पड़ सकता है। वहीं दूसरी ओर कई तरह की समस्याओं का सामना कर रही ऑटो इंडस्ट्री राहत की उम्मीद लगाए बैठी है। ऑटो इंडस्ट्री अपने सबसे खराब दौर में किस वजह से पहुंची। आइये उन तथ्यों की जांच परख करने की कोशिश करते हैं।
जीएसटी ज्यादा होने से बिक्री में गिरावट
केंद्र सरकार ने इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने के लिए उन पर लगने वाली जीएसटी को तो घटा दिया है लेकिन अन्य गाड़ियों पर अभी अधिक जीएसटी है। अन्य गाड़ियों और उनके पार्ट्स पर 28 फीसदी जीएसटी लगने से गाड़ियों की लागत में बढ़ोतरी हो गई है। यही वजह है कि 6 माह से देश में वाहनों की बिक्री में लगातार गिरावट देखने को मिल रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक देशभर में कई कंपनियों ने गाड़ियों का उत्पादन बंद कर दिया है।
कर्ज देने वाली कंपनियां संकट में
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, खुदरा बाजार में मारूति की जितनी गाड़ियों की बिक्री होती है, उसमें से करीब एक तिहाई कारों के लिए कर्ज नॉन बैंकिंग फाइनैंशल कंपनी मुहैया कराते हैं। बता दें कि छोटे शहरों में के जरिए गाड़ियों की खरीद के लिए कर्ज दिए जाते हैं। छोटे शहरों में कर्ज प्रदाता के तौर पर एक प्रमुख साधन माना जाता है। चूंकि मौजूदा समय में ज्यादातर के वित्तीय संकट में फंसी हुई है और वे कर्ज की वसूली भी नहीं कर पा रही हैं। यही वजह है कि की लोन देने की क्षमता कम हो गई है। इसीलिए उन्होंने फिलहाल गाड़ियों आदि के लिए कर्ज देना कम कर दिया है।
लोगों को नए इंजन का इंतजार
कंपनियों को 1 अप्रैल 2020 तक वाहनों में बी.एस-6 इंजन लगाना अनिवार्य होगा। फिलहाल कंपनियां बी.एस-4 इंजन लगा रही हैं। बता दें कि बी.एस-6 से डीजल वाहनों से 68 फीसदी और पेट्रोल वाहनों से 25 फीसदी नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कम होगा। यही वजह है कि लोग ठै.6 वाली गाड़ियों का इंतजार कर रहे हैं, जिसकी वजह से भी मांग में कमी देखने को मिल रही है।
नरेंद्र मोदी सरकार का ये हो सकता है प्लान
पिछले कुछ समय में नरेंद्र मोदी सरकार इलेक्ट्रिक वाहनों पर ज्यादा जोर दे रही है। उसके पीछे तर्क दिया जा रहा है कि इससे प्रदूषण तो कम होगा ही साथ ही विदेशों से इंपोर्ट होने वाले ऑयल पर भी हमारी निर्भरता कम होगी। बता दें कि सरकार ऑयल इंपोर्ट को कम करके चालू खाता घाटा को कम करना चाहती है। जानकारों की मानें तो लॉन्ग टर्म में मोदी सरकार द्वारा इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा देने से देश को काफी फायदा होने जा रहा है। हालांकि ऑटो सेक्टर की मौजूदा मंदी को देखते हुए केंद्र सरकार फिलहाल चौतरफा घिरी हुई है। ऐसे में आने वाले समय में यह देखना होगा कि केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार ऑटो सेक्टर को इस दुष्चक्र से निकालने के लिए क्या कदम उठाती हैए जिससे इंडस्ट्री के साथ-साथ दांव पर लगी लाखों लोगों की नौकरियां जाने से बच जाए।