क्रिसमस डे 25 दिसंबर को पूरी दुनिया में क्यों मनाया जाता है?

क्रिसमस ईसाई धर्म के लोगों का सबसे प्रमुख त्योहार है, जिसे हर साल 25 दिसंबर के दिन क्रिसमस डे के रूप में मनाया जाता है. एक दिन पहले यानी 24 दिसंबर से ही क्रिसमस की धूमधाम शुरू हो जाती है. ईसाई धर्म के लोग इस दिन को यीशू मसीह के जन्मदिन के रूप में मनाते हैं. भारत में भी ईसाई धर्म के साथ अन्य सभी धर्म के लोग क्रिसमस का त्योहार धूमधाम के साथ मनाते हैं. लेकिन क्या आप क्रिसमस के इतिहास और इसके महत्व के बारे में जानते हैं.
ईसाई धर्म के लोग क्रिसमस से एक दिन पहले यानी 24 दिसंबर से ही क्रिसमस का पर्व मनाते हैं. 24 दिसंबर की आधी रात को लोग चर्च जाते हैं और यहां विशेष तौर पर पूजा यानी प्रार्थना की जाती है. ईसाई धर्म के लोग अपने प्रभु ईसा मसीह को याद करते हैं. फिर एक दूसरे को क्रिसमस की बधाई देते हैं और तोहफे बांटते हैं।
एक समय क्रिसमस का पर्व केवल पश्चिमी देश और ईसाई बहुल इलाकों में ही मनाया जाता था. लेकिन आज यह दुनियाभर में मनाया जाने वाला पर्व बन गया है. क्रिसमस पर्व को लेकर ऐसी मान्यता है कि लोगों को पाप से मुक्त कराने और रोकने के लिए ईश्वर ने अपने बेटे को भेजा था और ईसा मसीह ने लोगों को पाप से मुक्त कराने से संघर्ष में स्वयं के प्राण त्याग दिए।
क्रिसमस का इतिहास कुछ साल नहीं बल्कि कई शताब्दी पुराना है. कहा जाता है कि सबसे पहले क्रिसमस रोम देश में मनाया गया था. लेकिन 25 दिसंबर के दिन को क्रिसमस से पहले रोम में सूर्यदेव के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। उस वक्त रोम के सम्राट सूर्यदेव को अपना मुख्य देवता मानते थे और सूर्येदव की अराधना की जाती थी।
लेकिन 330 ई. आते-आते रोम में ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार बहुत तेजी से बढ़ने लगा. रोम में अधिक संख्या में ईसाई धर्म के अनुयायी हो गए. इसके बाद 336 ई. में ईसाई धर्म के अनुयायियों ने ईसा मसीह को सूर्यदेव का अवतार मान लिया और इसके बाद से 25 दिसंबर के दिन को ईसा मसीह के जन्मदिन के रूप में क्रिसमस का त्योहार मनाए जाने की परंपरा की शुरुआत हुई.
लोग इस दिन को बुराई पर अच्छाई की जीत के तौर पर मनाते हैं. क्रिसमस का त्योहार ईसाई धर्म के लोगों के लिए नया साल होता है. हर साल की तरह इस साल यानी 2022 में भी क्रिसमस डे 25 दिसंबर को मनाया जाएगा।

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