नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली उच्च न्यायालय के समक्ष शुक्रवार को एक याचिका दायर कर मांग की गई है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समलैंगिक विवाह की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल एवं न्यायमूर्ति ज्योति सिंह की पीठ ने सेवा न्याय उत्थान फाउंडेशन की इस याचिका पर सुनवाई के लिए तीन फरवरी की तारीख तय की है।
इस याचिका में दी गई दलील के अनुसार हिंदू जैसे समाजों में विवाह उनके धर्म का बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा हैं और उनकी दैवीय संस्थाओं के साथ-साथ धार्मिक ग्रंथों से जुड़ा हुआ हैं। इसके साथ ही विवाह का अपना भावनात्मक मूल्य भी है। याचिका में कहा गया है कि हिंदू विवाह अधिनियम के तहत समान लिंग विवाह की मांग करने वाली याचिका न केवल हिंदू विवाह की धार्मिक व्यवस्था के खिलाफ है, बल्कि बिना किसी कारण के अचानक बदलाव लाने के लिए भी है। साथ ही यह परिवर्तन विरासत, गोद लेने और धार्मिक पारिस्थिति तंत्र जैसे अन्य पहलुओं को भी प्रभावित करेगा। हिंदू समाज जो गंभीर रुप से धार्मिक ‘‘विवाह के संस्कार’’ पर टिका हुआ है। ऐसे में भावनात्मक आधार भी इसकी इजाजत नहीं देता।
संगठन ने संजीव नेवार और स्वाति गोयल शर्मा के माध्यम से कहा कि ऐसी शादियों को या तो विशेष विवाह अधिनियम जैसे धर्मनिरपेक्ष कानून के तहत पंजीकृत किया जाना चाहिए या मुस्लिम विवाह कानून और सिख आनंद विवाह अधिनियम जैसे सभी धार्मिक कानूनों के तहत अनुमति दी जानी चाहिए।
मुख्य याचिका में केन्द्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का इस आधार पर विरोध किया है कि भारत में विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है बल्कि जैविक पुरुष और महिला के बीच एक संस्था है। इसने यह भी कहा है कि न्यायिक हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों के नाजुक संतुलन के साथ पूर्ण तबाही का कारण बनेगा।