सांप्रदायिक नारेबाजी मामले में पुलिस को आरोपियों की आवाज के नमूने लेने की अनुमति मिली

नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली की एक अदालत ने अगस्त में यहां जंतर-मंतर के पास कथित रूप से सांप्रदायिक नारे लगाने से जुड़े एक मामले में पुलिस को हिंदू रक्षक दल के अध्यक्ष पिंकी चौधरी, अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय और अन्य आरोपियों की आवाज के नमूने लेने की अनुमति दे दी।
मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट प्रयांक नायक ने दिल्ली पुलिस की याचिका को यह कहते हुए स्वीकार कर लिया कि आवाज के नमूने आठ अगस्त को नारे लगाने और भाषण देने में आरोपियों की भूमिका का पता लगाने के लिए आवश्यक हैं।
अदालत ने कहा, ‘‘मौजूदा मामले में, नारे/भाषण में आरोपियों की भूमिका का पता लगाने के लिए आवाज का नमूना आवश्यक है। इसी के मद्देनजर आवेदन स्वीकार किया जाता है।’’
अदालत ने चौधरी, उपाध्याय और अन्य सह-आरोपियों विनोद शर्मा, दीपक सिंह, सुशील तिवारी, विनीत वाजपेयी, प्रीत सिंह और उत्तम उपाध्याय को निर्देश दिया कि जब भी मामले का जांच अधिकारी (आईओ) उन्हें उनकी आवाज के नमूने देने के लिए सूचित करे , तब वे उपलब्ध रहें।
अदालत ने कहा, ‘‘संबंधित आईओ को आरोपियों को कम से कम एक दिन पहले सूचना देने का निर्देश दिया जाता है।’’
चौधरी ने 31 अगस्त को दिल्ली पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था और उसे 30 सितंबर को जमानत दे दी गई थी, जबकि उपाध्याय को 10 अगस्त को गिरफ्तार किया गया था और 11 अगस्त को जमानत दी गई थी।
पुलिस ने आरोपियों पर यहां एक रैली में सांप्रदायिक नारे लगाने और युवाओं को एक विशेष धर्म के खिलाफ प्रचार करने के लिए उकसाने सहित विभिन्न आरोप लगाए।
इससे पहले एक निचली अदालत ने चौधरी की अग्रिम जमानत याचिका को यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ‘‘हमारे यहां तालिबान का राज नहीं हैं।’’
अदालत ने कहा था कि अतीत में इस तरह की घटनाओं ने सांप्रदायिक तनाव पैदा किया है, जिससे दंगे हुए हैं और जान-माल का नुकसान हुआ है।
न्यायाधीश ने कहा था, ‘‘हमारे यहां तालिबान राज नहीं हैं। हमारे विविध और बहु-सांस्कृतिक समाज में कानून का राज पवित्र शासन सिद्धांत है। एक ओर जहां पूरा भारत ‘आजादी का अमृत महोत्सव’ मना रहा है, वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों के मन अभी भी असहिष्णु और आत्म-केंद्रित मान्यताओं से बंधे हैं।’’

 

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