नई दिल्ली, नगर संवाददाता: उच्चतम न्यायालय ने पत्रकार पैट्रिसिया मुखिम की उस याचिका पर मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया जिसमें उन्होंने फेसबुक पोस्ट से कथित रूप से सांप्रदायिक अशांति फैलाने को लेकर उनके विरूद्ध दर्ज की गयी प्राथिमिकी को खारिज करने से इनकार करने के मेघालय उच्च न्यायालय के आदेश को चुनौती दी है। न्यायमूर्ति एन नागेश्वर राव और न्यायमूर्ति रवींद्र भट की पीठ ने दलीलें सुनीं। मुखिम की वकील वृंदा ग्रोवर ने कहा कि पोस्ट के माध्यम से सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने या संघर्ष पैदा करने की कोई मंशा नहीं थी। इस पोस्ट में तीन जुलाई, 2020 को किये गये जानलेवा हमले का हवाला दिया गया था। ग्रोवर ने अपनी मुवक्किल की तरफ से कहा, ‘‘यह देखा जाए कि मेरे पोस्ट की मंशा क्या थी। मैं मुख्यमंत्री और पुलिस प्रमुख का इस हमले की तरफ ध्यान आकृष्ट कर रही हूं। मेरी मंशा समाज में मौजूद आपराधिक तत्वों को सामने लाना है। मैं एक जिम्मेदार नागरिक के तौर पर अपनी भूमिका निभा रही हूं। मेघालय सरकार के वकील ने शीर्ष अदालत से कहा कि नाबालिग बच्चों के बीच के झगड़े को ‘सांप्रदायिक रंग’ दिया गया तथा पोस्ट दर्शाता है कि यह आदिवासी एवं गैर आदिवासी लोगों के बीच की सांप्रदायिक घटना है। पिछले साल 10 नवंबर को मेघालय उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में मुखिम को सांप्रदायिक सद्भाव बिगाड़ने का दोषी पाया था और प्राथमिकी खारिज करने से इनकार कर दिया था। मुखिम ने फेसबुक पोस्ट में ‘जानलेवा हमला करने वाले तत्वों की पहचान नहीं कर पाने के लिए लॉसोहतुन गांव की पारंपरिक परिषद दोरबार शनोंग की आलोचना की थी। उससे पहले जुलाई में पांच लड़कों पर बॉस्केटबॉल कोर्ट में हमला किया गया था। इस पोस्ट के बाद ग्राम परिषद ने मुखिम के विरूद्ध प्राथमिकी दर्ज करायी थी।