पूर्व सिंघभूम, झारखंड/नगर संवाददाताः यदि हम आपसे यह कहें कि बिना मिट्टी के भी फल-सब्जियां पैदा हो सकती हैं, तो सुन कर थोड़ा अटपटा लगेगा, लेकिन ऐसा संभव है। इजरायल, जापान, चीन और अमेरिका आदि देशों के बाद अब भारत में भी यह तकनीक दस्तक दे चुकी है। किसान इस तकनीक से खीरा, टमाटर, पालक, गोभी, शिमला मिर्च जैसी सब्जियां उगा सकेंगे। टाटा स्टील के अमृतांशु व जुस्को (जमशेदपुर यूटिलिटीज एंड सर्विसेज कंपनी) के गौरव आनंद जमशेदपुर में एक्वापोनिक विधि से खेती करने की विधि पर काम कर रहे हैं। गोपाल मैदान में चल रहे फ्लावर शो के तीसरे दिन तकनीकी सत्र में शिरकत करने आए इन दोनों पर्यावरणविदों ने बताया कि इस तकनीक को स्वॉयललेस कल्टीवेशन कहा जाता है। वैज्ञानिकों ने इसे ‘हाइड्रोपोनिक्स’ यानी ‘जलकृषि’ नाम दिया है। इसमें मिट्टी का प्रयोग नहीं होता है। शौकिया तौर पर एक्वेरियम(मछलीघर) में मछली रखने वाले इस विधि से घर पर ही सब्जियों की खेती भी कर सकते हैं। इसके लिए मिट्टी या खाद की जरूरत नहीं है और पानी का इस्तेमाल भी 90 फीसद कम हो जाएगा।एक्वापोनिक विधि के तहत मछली के टैंक के ऊपर प्लास्टिक के गमले में कुल्हड़ को तोड़कर डाला जाता है। इन पत्थरों में पानी को सोखकर रखने की क्षमता होती है। गमले को पानी के पाइप से मछली के टैंक से जोड़ा जाता है। पानी के मोटर से मछली के टैंक का पानी ऊपर गमले में आएगा। मछली के वेस्ट सब्जियों की खेती के लिए उपयोगी हैं और खेती के वेस्ट मछलियों के खाने के काम आएंगे। इस विधि को भविष्य की खेती के रूप में देखा जा रहा है। परंपरागत तकनीक से पौधे और फसलें उगाने की अपेक्षा हाइड्रोपोनिक्स तकनीक के कई लाभ हैं। इस तकनीक से विपरीत जलवायु परिस्थितियों में उन क्षेत्रों में पौधे उगाए जा सकते हैं, जहां की मिट्टी उपजाऊ नहीं है। टाटा स्टील के अमृतांशु व जुस्को के गौरव आनंद कर रहे एक्वापोनिक विधि पर काम 490 फीसद तक पानी की बचत करेगी हाइड्रोपोनिक्स तकनीक