नई दिल्ली/नगर संवाददाताः गत वर्ष दिवाली के अगले दिन दिल्ली एनसीआर ने धुंध की चादर में खुद को लिपटा पाया और यह धुंध कई दिनों तक कायम रहा। भारत में गहराते प्रदूषण संकट के कारण हुई मौतों ने इसे चीन के बाद दूसरे स्थान पर जगह दे दी और पूरी दुनिया में फैले प्रदूषण का आधे से अधिक हिस्सा इन दोनों देशों का है। बोस्टन में मंगलवार को रिलीज स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर 2017 के रिपोर्ट के अनुसार, 2015 में 2.54 लाख मौतें हुईं और इनके पीछे फेफड़े का संक्रमण कारण रहा। यह आंकड़ा बांग्लादेश के आंकड़े से 13 गुना अधिक और पाकिस्तान के आंकड़े से 21 गुना अधिक है। रिपोर्ट में 2000 से अधिक शोधकर्ताओं ने 1990 के बाद से 195 देशों में 300 से अधिक बीमारियों के लिए, व्यवहार आहार और पर्यावरण को जोखिम कारक माना है। रिपोर्ट के नतीजों के बारे में सेंटर फॉर साइंस एंड एंवायर्नमेंट की अनुमिता राय चौधरी ने कहा, ‘भारत को इस मामले में ढील नहीं देनी चाहिए। ओजोन प्रदूषण की वजह से कम उम्र में ही लोगों की मौत हो जाती है। इस समस्या से निपटने के लिए देशव्यापी कदम उठाने की जरूरत है। इसके लिए पूरी तैयारी के साथ काम करना जरूरी है।’ रिपोर्ट में कहा गया है कि दुनिया की 92 फीसदी आबादी हानिकारक हवा में सांस लेती है। रिसर्च करने वाले संस्थान ‘हेल्थ इफेक्ट्स इंस्टिट्यूट’ (के डैन ग्रीनबाउम ने बताया, ‘शोध में सामने आया है कि दुनिया के कई हिस्सों में स्थिति सुधर रही है लेकिन अभी चुनौतियां हैं।’