नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि पुलिस हिरासत में या पूछताछ के दौरान लोगों को मारने-पीटने की इजाजत कानून नहीं देता और “किसी के लिए भी जॉर्ज फ्लॉयड के दुखद शब्दों ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा’ को दोहराने की नौबत नहीं आए।” अदालत ने कहा कि किसी भी आपराधिक कार्रवाई के लिए सजा निर्धारित करना कानून का काम है।
अदालत दो लोगों की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिन्हें कथित तौर पर अवैध रूप से हिरासत में लिया गया था और दिल्ली पुलिस के अधिकारियों ने बेरहमी से पीटा था। याचिकाकर्ताओं ने घटना की एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी द्वारा निष्पक्ष तरीके से एवं नए सिरे से प्रारंभिक जांच का अनुरोध किया है।
अफ्रीकी मूल के अमेरिकी व्यक्ति, जॉर्ज फ्लॉयड की मौत पर पिछले साल अमेरिका में व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए थे जब एक वीडियो में एक पुलिस अधिकारी उसे नीचे धकेलते हुए और फ्लॉयड की गर्दन पर अपने घुटने से दबाते हुए दिख रहा था। इस दौरान फ्लॉयड को यह कहते हुए सुना गया ष्मैं सांस नहीं ले पा रहा।”
घटना की तस्वीरों का अवलोकन करने वाले न्यायमूर्ति नजमी वजीरी ने कहा कि याचिकाकर्ताओं पर पुलिस का हमला आपत्तिजनक है क्योंकि कानून पूछताछ के दौरान भी लोगों को पुलिस हिरासत में पीटने की इजाजत नहीं देता है।
उच्च न्यायालय ने कहा, “नागरिकों के अधिकारों के उल्लंघन या कानून-प्रवर्तकों द्वारा किसी भी तरह की लापरवाही या हद से ज्यादा प्रतिक्रिया के बारे में हर वक्त कोई भी सतर्क नहीं रह सकता है जिससे दुर्भाग्यपूर्ण घटना या त्रासदी हो सकती है। किसी को भी जॉर्ज पेरी फ्लॉयड जूनियर के ‘मैं सांस नहीं ले पा रहा’ जैसे दुखद शब्दों को कहने की नौबत नहीं आए।”
अदालत ने पुलिस उपायुक्त (सतर्कता) द्वारा जांच और याचिका को पुलिस के समक्ष याचिकाकर्ता के प्रतिवेदन के रूप में माने जाने का निर्देश दिया।