नई दिल्ली, नगर संवाददाता: दिल्ली उच्च न्यायालय ने यौन उत्पीड़न की शिकार 17 वर्षीय किशोरी को गर्भ गिराने की अनुमति दे दी है। यह किशोरी 24 सप्ताह के गर्भ से है। किशोरी को गर्भावस्था को चिकित्सकीय रुप से समाप्त करने की अनुमति दे दी है। उच्च न्यायालय ने साथ ही निर्देश दिया है कि इस मामले में डीएनए जांच के लिए नमूनों को विश्लेषण के लिए संरक्षित रखा जाये।
याचिकाकर्ता पीड़िता ने इस आधार पर गर्भावस्था को समाप्त करने का अनुरोध किया था कि वह नाबालिग है और इस उम्र में गर्भावस्था की स्थिति से निपटने या बच्चे की जिम्मेदारी लेने में सक्षम नहीं होगी। मेडिकल बोर्ड ने कहा कि याचिकाकर्ता को कोई चिकित्सा परेशानी नहीं है। ऐसे में गर्भावस्था की समाप्ति की जा सकती है। न्यायमूर्ति मुक्ता गुप्ता की एकल पीठ ने अपने आदेश में कहा कि मेडिकल बोर्ड की रिपोर्ट के मद्देनजर, एम्स के चिकित्सा अधीक्षक से अनुरोध है कि वह याचिकाकर्ता के गर्भ को जल्द से जल्द चिकित्सा तरीके से समाप्त करवाएं। डीएनए जांच के लिए नमूने भी सुरक्षित रखे जाएंगे ताकि फोरेंसिक प्रयोगशाला द्वारा उसका विश्लेषण किया जा सके।
इस मामले में याचिकाकर्ता की मां ने अपहरण का संदेह जताते हुए प्राथमिकी दर्ज कराई थी। आरोप है कि याचिकाकर्ता 23 मई को सुबह लगभग दस बजे बिना किसी को बताए अपने घर से निकली थी। उसका मोबाइल भी बंद पाया गया था। उच्च न्यायालय को सूचित किया गया कि याचिकाकर्ता तीन दिन बाद अपने घर वापस आई लेकिन उसने यौन उत्पीड़न का कोई आरोप नहीं लगाया। हालांकि, बाद में जब उसका बयान एक मजिस्ट्रेट के सामने दर्ज किया गया, तो उसने कहा कि उसे यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा और यह पाया गया कि वह गर्भवती है। उच्च न्यायालय ने 28 अक्टूबर को एम्स को निर्देश दिया था कि वह याचिकाकर्ता की जांच के लिए एक मेडिकल बोर्ड गठित करे और गर्भपात की संभावना पर विचार करे।