क्या है स्वामी चिन्मयानंद की पारिवारिक पृष्ठभूमि

शाहजहांपुर/नगर संवाददाता : छात्रा से दुष्कर्म के आरोप में घिरे पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता स्वामी चिन्मयानंद को शुक्रवार को गिरफ्तार कर अदालत में पेश किया गया जहां से उन्हें 14 दिन की हिरासत में भेज दिया गया। जानिए क्या है स्वामी चिन्मयानंद की पृष्ठभूमि

चिन्मयानंद का असली नाम कृष्णपाल सिंह है। वह उत्तरप्रदेश के गोंडा के परसपुर के रहने वाले हैं। कृष्णपाल का परिवार कभी छोटी रियासत का मालिक था। आज भी यहां उनके नाम कई बीघा जमीन है। परिवार कांग्रेस से जुड़ा था। उनके चचेरे भाई उमेश्वर प्रताप सिंह कांग्रेस के टिकट पर विधायक चुने गए। बहरहाल कृष्णपाल की रूचि आरएसएस में थी और वह बचपन से ही संघ की शाखा में जाने लगे।
लखनऊ विश्वविद्यालय से एमए करने वाले चिन्मयानंद ने मात्र 20 वर्ष की उम्र में घर छोड़ दिया और संन्यास के रास्ते पर चल पड़े। बताया जाता है कि वह गणतंत्र दिवस परेड देखने दिल्ली गए थे और फिर लौटकर नहीं आए।

80 के दशक में चिन्मयानंद शाहजहांपुर आए और स्वामी धर्मानंद के शिष्य के रूप में मुमुक्ष आश्रम में रहने लगे। कुछ ही सालों में वह राम मंदिर आंदोलन में बढ़.चढ़कर हिस्सा लेने लेगे। इस आंदोलन ने ही उन्हें भाजपा से जोड़ा। उनका राजनीतिक सफर शुरू हो गया और देखते ही देखते उनका नाम भाजपा के कद्दावर नेताओं में शुमार हो गया।

वह भाजपा के टिकट पर 3 बार सांसद का चुनाव जीता। अटल सरकार में उन्हें केंद्रीय गृहराज्यमंत्री बनाया गया। योगी आदित्यनाथ के गुरु योगी अवैद्यनाथ ने उनके बेहद करीबी संबंध रहे हैं। वह शाहजहांपुर में स्वामी शुक्रदेव लॉ कॉलेज भी चलाते हैं।
क्या है पूरा मामला: गौरतलब है कि स्वामी शुकदेवानंद विधि महाविद्यालय में पढ़ने वाली एलएलएम की छात्रा ने 24 अगस्त को कथित तौर पर एक वीडियो वायरल कर चिन्मयानंद पर शारीरिक शोषण करने, कई लड़कियों की जिंदगी बर्बाद करने एवं खुद को तथा अपने परिवार को जान का खतरा होने की बात कही थी।

इस मामले में पीड़िता के पिता ने कोतवाली शाहजहांपुर में अपहरण और जान से मारने के आरोप में विभिन्न धाराओं के तहत चिन्मयानंद के विरुद्ध मामला दर्ज कराया था। लेकिन इससे एक दिन पहले चिन्मयानंद के अधिवक्ता ओम सिंह ने पांच करोड़ रुपए की रंगदारी मांगने का मुकदमा पीड़िता के पिता के खिलाफ दर्ज करा दिया।

इस बीच पीड़िता गायब हो गई। कुछ दिन बाद उसे राजस्थान से बरामद कर लिया गया और उच्चतम न्यायालय के निर्देश पर उसे दिल्ली में शीर्ष अदालत के समक्ष पेश किया गया। न्यायालय ने एसआईटी को मामले की जांच का निर्देश दिया।

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