राजनीतिज्ञों की नजरबंदगी, क्या अब भी ‘सब कुछ’ सामान्य नहीं

जम्मू/नगर संवाददाता : जम्मू। सरकारी तौर पर 5 अगस्त के घटनाक्रम के बाद से ही ‘सब कुछ सामान्य है’ के दावों के बीच अगर सिर्फ जम्मू की बात करें तो नजरबंद किए गए दर्जनों राजनीतिज्ञों की नजरबंदगी के प्रति प्रशासन अभी भी मौन है। ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यह है कि अगर वाकई ‘सब कुछ सामान्य है’, तो जम्मू में भी नेताओं को नजरबंद क्यों किया गया है।

सिर्फ जम्मू जिले में ही 2 दर्जन से अधिक वरिष्ठ राजनीतिज्ञों को उनके घरों में ‘नजरबंद’ किया गया है। 4 व 5 अगस्त की रात से ही वे अपने घरों में ‘कैद’ होकर रह गए हैं जबकि प्रशासन कहता है कि वे कहीं भी आने-जाने के लिए स्वतंत्र हैं।

पर सच्चाई क्या है? इन राजनीतिज्ञों के घरों के बाहर तैनात पुलिस दल बल को देखकर अंदाजा लगाया जा सकता है, जो उन्हें घरों से बाहर नहीं निकलने दे रहे और मुलाकात करने आने वालों की गहन पूछताछ के बाद एकाध को ही घरों के भीतर जाने दे रहे हैं।
आप यह जानकर हैरान हो जाएंगे कि जिन दर्जनों नेताओं को जम्मू में नजरबंद किया गया है, उनमें केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह के छोटे भाई देवेंद्र राणा भी हैं। वे पूर्व विधायक हैं और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुला के राजनीतिक सलाहकार भी रह चुके हैं।

सिर्फ वही नहीं, नेकां के सुरजीत सिंह सलाथिया, डोगरा स्वाभिमान संगठन के अध्यक्ष और 2 बार सांसद रह चुके चौधरी लाल सिंह, कांग्रेस के रमण भल्ला, नेकां के सज्जाद किचलू, पीडीपी के फिरदौस टाक, पैंथर्स पार्टी के हर्ष देव सिंह और यशपाल कुंडल समेत दर्जनों नेता नजरबंद हैं, पर सरकार उन्हें नजरबंद नहीं मान रही।
जो राजनेता नजरबंद किए गए हैं, उनमें 8 के करीब पूर्व मंत्रीए दर्जनभर पूर्व विधायक भी हैं। यह बात अलग थी कि उस किसी नेता को नजरबंद नहीं किया गया था, जो भाजपा से संबंधित था या फिर भाजपा की विचारधारा से सहमत था। दूसरे शब्दों में कहें तो प्रशासन के लिए सभी विपक्षी नेता शांति के लिए ‘खतरा’ साबित हो सकते हैं इसलिए 19 दिनों से वे अपने घरों में नजरबंद हैं।

इन नेताओं की ‘नजरबंदगी कब खत्म होगी’ के प्रति न ही पुलिस अधिकारी कुछ बोलते थे और न ही राज्य प्रशासन के अधिकारी। वे तो एक स्वर में कहते थे कि उनकी ओर से इन नेताओं को नजरबंद करने का कोई आदेश जारी नहीं हुआ था, तो ऐसे में इन नेताओं के घरों के बाहर तैनात छोटे पुलिस अधिकारी सच में इतने ताकतवर कहे जा सकते है, जो अपने स्तर पर ही उन्हें नजरबंद करने का फैसला लिए हुए हैं। इस सवाल पर खामोशी जरूर अख्तियार की जा रही है।

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